कभी अकेले भी चलना पड़ा, जब कोई रहबर ना मिला,
लंबा सफ़र तन्हा बिता, जब कोई रहगुज़र ना मिला.
मुश्किल हालातों के दौर खुदा किसी को ना दे यहाँ,
रातें रोती हुयी कटी मेरी, मुझे जब कोई घर ना मिला.
पलकों के झपकते ही नजरों से मेरे दूर था हो गया,
लाख तलाशा, तड़पा कर जाने वाला बेदादगर ना मिला.
शीशे की फितरत है, टूट कर कभी दोबारा जुड़ता नहीं,
मुझे जलाकर चल दिया, वापस वो खोया हुनर ना मिला.
हर किसी की नज़रे यहाँ जुदा-जुदा, सब में वो जादू नहीं,
उसकी आँखों की वो कशिश, मुझे कहीं वो असर ना मिला.
समझ लो बिछड़ गए जैसे जिस्म और रूह एक दूसरे से,
जब से बिछड़ा मुझसे, फिर कहीं महबूब-ए-नज़र ना मिला.
Monday, December 14, 2009
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