Thursday, December 10, 2009

हमारी मौज़ में कभी वो भी शामिल हो जायें


हमारी मौज़ में कभी वो भी शामिल हो जायें,
हाल-ए-दिल का मेरे वो जरा पैगाम सुन जायें.

दुनिया है बेरहम बहुत हैं सताने वाले यहाँ,
उम्मीद मेरे ईश्क की ना वो किसी से घबरायें.

मेरी आरजू की तस्वीर लिए आँखों में आये हैं,
ज़माने वाले देख रहे हैं आँखों में आँखों गड़ाएं.

ये ईश्क जरुरत-ए-जिंदगानी बन गया मेरी,
कभी चेहरे की हसी नजाकत मुझको दिखाएँ.

और क्या जुस्तजू करू तेरे सिवा यहाँ अब,
मेरे हमदम तू आकर मुझे मेरे दर्द में बहलायें.

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