Monday, December 14, 2009
कैसे बयां करू कैसे दिलकश उसके अंदाज़-ए-बयान हैं
कैसे बयां करू कैसे दिलकश उसके अंदाज़-ए-बयान हैं,
शहद की बारिश हो जिससे, कुछ ऐसी उसकी जुबान है.
लाचार हो गया जैसे, फिरता आवारा उसकी आरजू में,
मेरे हर कदम के मंजिल की अब उसके पास कमान है.
इत्तेफाक रखती है मेरी हर बात से, होती मुझ से रूबरू,
फर्क कहने में वो ही एक बचा मेरा, यही मेरा गुमान है.
वो है जन्नत है, उसकी ही खुश्बू मेरी हर अदा से आती,
मेरे हर कदम देखो, उसके ही बतायें छोड़े हुये निशान हैं.
मेरी हर नुमाइंदगी में वो, मेरी हर नफस का संगीत है वो,
जबां से मैं करता हूँ बयां चाहे चेहरे से मेरे सब निहान है.
ए मेरे मालिक तुझे है सब पता, तू ही तो सच्चा दोस्त मेरा,
मेरा सच्चा हमदम, वो मेरी जुस्तजू का दिल-ओ-जान है.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment