आवाज़ ना दो मुझे दोस्तों आज पिली मैंने ईश्क की शराब है,
हो सके तो हर्फ़-ए-दुआ करो मेरे हाथों में ईजहार का गुलाब है.
नज़ारे बहुत हैं यहाँ पर मेरी आँखों में उसी का ही हसी चेहरा,
दिलकशी मुलाकाते लिखी जिसमें आज हाथों में वो किताब है.
दुनिया कभी रंगीन है, कभी-कभी दुनिया लगती गमगीन है,
हर मंज़र में उसका चेहरा जाने सच है या मेरा ये एक ख्वाब है.
कदम बढ़ रहे ज़रा मेरी मंजिल का ठिकाना बता दे कोई मुझे,
सोचू कुछ बोलूँ कुछ और, कैसा छाया मुझ पर जाने सबाब है.
जब से मैंने छू ली उसकी सूरत, दीवानगी जैसे मेरी नफस बनी,
हो गया रोशन, फीका जो पड़ गया वो तू आसमा के आफताब है.
ए शब तू जल्दी आया कर तेरा ही है मुझे बेसब्री से इंतजार,
जलवा देखता हूँ जिसका अब मेरे पास दिलकशी वो माहताब है.
Saturday, December 19, 2009
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