Thursday, May 6, 2010

वक्त ने दी आवाज़ है मौका कुछ कर गुजरने का

वक्त ने दी आवाज़ है मौका कुछ कर गुजरने का,
घूट-घूट के बहुत जी लिए आ गया है पल उभरने का. 


आसमा भी हमें अब निहारता आस में दोस्तों, 
ये भूला नहीं वो ज़मानें शहीदों के लहू बिखरने का.

जाने क्यों ईक दबी आग सुलग रही सबके दिल में यहां,

जी करता है शहादत के गीत उन दिलों में भरने का.

ये नाइंसाफी के नज़ारे, लाचारों संग हो रही ज्यादती,

अब आ गया है आखरी वक्त इन सबके ठहरने का.

दो पल की रोटी पाने के लिए जूझता है जब कोई,

नहीं देखा जाता वो मंज़र किसी की रूह के जलने का.

कुछ लोगों की उँगलियों के ईशारों पर सब की किस्मत, 

होगा ईक नया सवेरा है वक्त ये काली रात के ढ़लने का.

ओ! गहरी नींद में अब तक सोने वालों जरा जगो,

है नयी उमंग सुनहरा मौका फिर ना मिलेगा संभलने का.

अपनी ताकत का अहसास करो तुम रोने वालों कभी,

नया युग नयी संवेदना आ गया वक्त अब सोच बदलने का.

Tuesday, May 4, 2010

दिल को ईक रोज़ टूटकर बिखर जाना ही था

दिल को ईक रोज़ टूटकर बिखर जाना ही था,
खेलकर साथ इसके उसको सवर जाना ही था.

जानेवाला हँसते हुये गया मेरे सूने दर से,
आखिर आँखों को आसुओं से भर जाना ही था.

फरेब की चादर ओढ़े मोहब्बत की सूरत,
सामने उसके झुक मेरा ये सर जाना ही था.

दुनिया के सिलसिले सदियों से चलते आ रहे,
बहारों के इस मौसम को गुज़र जाना ही था.

दुआ ही दी थी अपनी हर एक सदा में उसे,
नाकाम रही तो वफ़ा का सफ़र ठहर जाना ही था.

इंसा जो सोचता है वो कहा होता है मुंकिन,
चाहा था उम्रभर का साथ उसे मगर जाना ही था.

पहचान नहीं होती भीड़ में अपनों और गैरों की,
कड़वा घूंट था सच का गले में उतर जाना ही था.

Monday, May 3, 2010

रूठा है मुझसे खुद पर ही मैंने ईल्ज़ाम लिया है

रूठा है मुझसे खुद पर ही मैंने ईल्ज़ाम लिया है,
तेरी रुखसत में बहते आसुओं को थाम लिया है.

तेरी जुदाई का डर सताता रहा मुझे रात भर,
वक्त से किया सौदा खरीद दर्द का सामान लिया है.

दिखने लगा बयाबानों पे गुजरने का मंज़र,
सोच उसी को बेचैनी में आज आराम लिया है.

ईश्क-ओ- मोहब्बत दूसरी दुनिया की चीजें हैं,
वक्त के आईने में झांक ये भी पहचान लिया है.

बीती यादें ये बहते आंसू शायद काम आयें,
भर इनको पैमाने में इन्हें बना जाम लिया है.

लाख कोशिश की लकीर हाथों से मिटाने की,
लबों ने फिर भी हर पल उसी का नाम लिया है.

Saturday, May 1, 2010

शाम है अकेली तन्हाई का आलम छानेवाला है

शाम है अकेली तन्हाई का आलम छानेवाला है,
दर्द की राह देख रहा कोई लेके दर्द आनेवाला है.

तनहा घूमता रहता है रात भर यहां से वहां,
क्या चाँद भी किसी को दिल से चाहनेवाला है.

सूबे आँख खुली तो चेहरे पे अहसास पाया था,
दिन भर रहा साथ अब छोड़ मुझे जानेवाला है.

सांसे विरहा में कभी तेज़ कभी धीमी हो रही,
बड़ी मुश्किल से आंसुओ को आज संभाला है.

नदी से तड़पते हुये जैसे निकलती है मछली,
कुछ यूँ दिल की यादों को दिल से निकाला है.  

गहरी है चोट और गहरा है ईक दर्द पराया,
हँस के जो उसे ढ़ो रहा बड़ा अज़ब दिलवाला है.

आज है तूफां कल ये झोंके बहार लायेंगे

आज है तूफां कल ये झोंके बहार लायेंगे,
तू सब्र कर ए दिल खुशियाँ हज़ार लायेंगे.

जिसे देख हैरत करेगा ये आसमा ,
ऐसा कुछ कारवां वक्त-ए-इंतजार लायेंगे.

अधूरे सपने पूरे हो जायेंगे उस दिन,
लम्हें चुरा तेरा बरसो का प्यार लायेंगे.

शिकवा ना कर जिंदगी से ए दोस्त,
फ़रिश्ते ईक रोज़ चैन का कारोबार लायेंगे.

आज दूर दिखती है मंजिल की ज़मीं,
तेरे कदम चलकर उसे दो-चार लायेंगे.
 
बंज़र जमीं पे तू आज बो कुछ सपने,
कल ये ही यहां खुशियों का गुलज़ार लायेंगे.