Friday, December 17, 2010

तुम बस रूह से हमें अपनाने लगो

रूठ जाएँ तुमसे प्यार से मनाने लगो,
हमको हमारी चाह के दीवाने लगो.

चली हो कभी शिकवों की कलम कोई,
मेरी आँखों के आंसुओं से मिटाने लगो.

जिसे आदत नहीं बिन तुम्हारे जीने की,
उसे ना दूर रह इस कदर सताने लगो.

बड़ा दर्द है इस लब्ज़ ए जुदाई में ,
जुदा होके दिल को ना दुखाने लगो.

यूँ चुप बैठे तुम नहीं लगते अच्छे,
सुनो आवाज़ लबों को हिलाने लगो.

जिंदगी में रंग नहीं बिन आपके,
रखो कदम और इसे सजाने लगो.

रख दूँ हर डाली के फूल सिराने में,
तुम बस रूह से हमें अपनाने लगो.

Monday, December 13, 2010

क्या आज सूरज की रोशनी कम है,

क्या आज सूरज की रोशनी कम है,
जो बुझा बुझा सा बोझिल मौसम है.


दुनिया है वही पे जहा वो कल थी,
अहसास ए उदासी क्या मेरा वहम है.



जिस आशियाने की राह  भूल चुके,
उसी की तलाश में बढ़ जाता कदम है.


कभी सुनी सी हो जाती है जिंदगानी,
लगता मिजाज़ महफ़िलों का मातम है.


छलक जाते हैं ये आंसू खुद ही कभी,
गिरती जैसे चांदनी रात में शबनम है.



चाहत खुशियों की प्यास बुझा लूँ,
पर ख़ुशी की सुराही में पानी कम है.



सिने में अज़ीज़ बनके है जो रहता,
मेरा तो ईक ही सनम मेरा ये गम है.

Friday, December 10, 2010

शाम ढलते ही रोज़ ईक आहट होती है

शाम ढलते ही रोज़ ईक आहट होती है,
बड़ी अजीब ख्वाबों के जहाँ की बनावट होती है.


दूसरों को देके दर्द फिर भी हैं मुस्कराते,
क्या उनके खून में बेवफाई की मिलावट होती है.


भूल के भी जो सपनें भूलें ना जाएँ हमसे,
कुछ ऐसी ईश्क के संसार की सजावट होती है.


ज़ख्मों को और कुरेद के जो हैं लिखते,
बस आंसुओं से सजी उनकी लिखावट होती है.


रूह को जलने में खुद का देता है साथ,
इस मन के लिए नहीं कोई रुकावट होती है.


पल भर का साथ और फिर गम का दामन,
कुछ ही पल कागजी फूलों की खिलावट होती है.