Tuesday, December 29, 2009

ना मैं मरा ना मैं जीया बता दे मुझे कैसा तू कातिल है


ना मैं मरा ना मैं जीया बता दे मुझे कैसा तू कातिल है,
तुझ को ही ढूढ़े अब यहाँ-वहाँ मेरा ये पागल  दिल है.

गुलशन भी खिल गया, बहारों ने भी आज दस्तक दी,
तू मिल जाये तो चैन आ जाये जाने ये कैसी मुश्किल है.

अर्श में रहा कभी मैं फर्श में रहा पर हमेशा चलता रहा,
नज़रों ने ढूढ़ लिया दिल ने कह दिया तू ही मेरी मंजिल हैं.

खूश्बुवों से महकता जहां सितारों को आज जमीं पे देखा,
कभी उदास थी जो आज सुरों से सजती वो महफ़िल है.

कभी आंधिया आयी कभी बहारों का समां देखा है मैंने,
थी नज़रें जिसे खोज रही शायद पास आज वो साहिल है.

दुनिया कभी रुकती नहीं कहा किसी के लिए है ठहरती,
मेरी जुस्तजू मेरी आरजू जैसे लगे मुझे आज हासिल है.

लोग जाये यहाँ-वहाँ, मंदिर मस्जिद में अपनी दुआ करें,
तुझे देखा तो लगा तू ही एक सच्ची इबादत के काबिल है.

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