Tuesday, December 15, 2009

वो हर लम्हें में मेरे करीब और करीब आते जायें तो मै क्या करूँ


वो हर लम्हें में मेरे करीब और करीब आते जायें तो मै क्या करूँ,
मेरा दिल उसी के साथ हर पल सुकून पाते जायें तो मैं क्या करूँ.

वो ओढ़े सादगी की चादर मेरे नज़रों को तड़पाती है हर रोज़,
भोली सूरत,मेरे सामने आकर वो शरमाते जायें तो मैं क्या करूँ.

बदल गया हूँ मैं मुझे नहीं पता कौन सा जादू आता है उसको,
खुशियों के हीरे मेरे लिए ढूढ़-ढूढ़ कर लाते जायें तो मैं क्या करूँ.   

सच्चाई का आईना उसकी सूरत,हँसी सच्चाई की है एक मूरत,
मुझे सता कर वो शरारत में मुस्कराते जायें तो मैं क्या करूँ.

मिठास से भरी सदा उसकी,दिल सागर सा है गहरा उसका,
हर गलती पर नादानों के जैसे समझाते जायें तो मैं क्या करूँ.

ईश्क से अनजान नहीं,इसके दर्द और सुकून से इत्तेफाक मुझे,
बिना कुछ कहे ईश्क की आग में जलाते जाये तो मैं क्या करूँ.

2 comments:

  1. bahut bahut badhiya gajal ....maja aa gaya padhkar ....apna blog blogvaani ya hindi youm jaise blog se jode ....

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