Monday, February 1, 2010

अश्क-ए-निहान तू मुझे सताता बहुत है

अश्क-ए-निहान तू मुझे सताता बहुत है,
मुस्कराता है जब-जब जलाता बहुत है.

सितम तेरे है या कह दूँ वहशत है मेरी,
मुझको गाफिल हो तू पिलाता बहुत है.

गर्दिश-ए-दौर वो बीत चूका है कब के,
क्यों रातों को नींद से उठाता बहुत है.

इक-इक पल यूँ दुश्वार है रुखसत में तेरी,
फिर भी ये दिल ज़माने से छुपाता बहुत है.

इशरत की आरजू फ़ना ना हो जायें मेरी,
दिल मेरा सपनों के महल बनाता बहुत है.

जुदा होयें तुझसे आज अरसा है गुज़र गया,
जालिम जब याद आयें तो रुलाता बहुत है.

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