Sunday, February 14, 2010

मुलाकात फिर बात फिर गुलाब आया

मुलाकात फिर बात फिर गुलाब आया,
कैसी ये दास्ता घटी रूबरू माहताब आया.

महफ़िल की भीड़ से जो दूर गया,
उस भोली सी सूरत का ख्वाब आया.

उसका नशा खूब चढ़ा है आजकल,
क्योंकि बातों में समा वो शराब आया.

यूँ हुवा लेन देन दिल से दिल का,
बना बेगाना कर खुद को खराब आया.

आरजू को मिला रास्ता मंजिल का,
मैं हूँ तेरी जो यूँ उसका जवाब आया.

दीवानगी की ये जो अलख जगी,
क्या कहूँ कैसा तुझ पे शबाब आया.

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