Monday, February 22, 2010

रात भर हवा से पेड़ों के पत्ते लहराते रहे

रात भर हवा से पेड़ों के पत्ते लहराते रहे,
वो यादों में कभी आते रहे कभी जाते रहे.

बज रही थी मन के कोने में कहीं शहनाई,
खुद ही गाते रहे खुद को ही सुनाते रहे.

गुजरी है कल की रात आसमां निहारते,
तारे जगमगाते रहे रोशनी बिखराते रहे.

गुमसुम बैठा रहा सोता जगता रहा,
अधियारे के मंज़र मुझे आजमाते रहे.

बंद आँखों में देखा पहचाना सा चेहरा,
चेहरा वो तेरा देख मुझे शरमाते रहे.

जी किया भर लूँ तुझे आज बाँहों में,
मिलन को है वक्त खुद को समझाते रहे.

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