Wednesday, January 13, 2010

क्यों ना एक दाँव और खेले, फिर किस्मत आजमाते हैं


क्यों ना एक दाँव और खेले, फिर किस्मत आजमाते हैं,
गम को छुपा दो ज़रा, दिलवाले ही दर्द में मुस्करातें हैं.

सीख जहाँ के रिवाजों से, ख्वाबों को हमेशा जिंदा रख,
तेरी हार में ही जीत के रास्ते बंदे खुदा तुझे दिखाते हैं.

तुझे मोहब्बत ना मिली, तो मोहब्बत ही जिंदगी नहीं,
जाने क्यों ईश्क में लोग यहाँ अपनी हस्ती को मिटाते हैं.

रात का अँधियारा बीत गया तुम दिन का उजाला देखो,
हिम्मत वाले ही राह की हर मुश्किल हंसकर हटाते हैं.

मजाक बनाये ये जमाना तेरा, इस कदर ना तू आंसू बहा,
होश वाले दिल की बातों को, दिल में ही दोस्त छुपाते हैं.

हसरतों का सुहाना मंज़र ना कभी सलामत रहा है दोस्त,
तुम सपनें ना देखो यहाँ, सुना है सपनें अक्सर टूट जाते हैं.

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