मैं क्या कहूँ मेरे ज़ज्बातों का चश्मदीद गवाह ये ज़माना रहेगा,
जिसे सब याद रखेंगें, मेरी कलम का ऐसा कुछ फ़साना रहेगा.
ना रहे अगर तो क्या हुआ मरना तो सबको है दोस्तों एक रोज़,
मरूँगा तो इस बदनाम को याद करने का ये एक बहाना रहेगा.
कितनी सदियाँ आयी, जाने कितनी और सदियाँ यहाँ आयेंगी,
आने वाले आयेंगे इस महफ़िल में, चलता ये आना-जाना रहेगा.
महबूब मेरे माहताब में देखूँ तेरे चेहरे के निशां मै यहाँ हर रात,
पत्थर दिलों को याद हमेशा तेरे जिक्र पर मेरा वो रुलाना रहेगा.
मेरी वफाओं को कौन झूठा कह सकता है इस बेदर्द से जहाँ में,
सब देंगें यहाँ दाद जिसे कुछ इस कदर मेरा ईश्क निभाना रहेगा.
इक पल को सब देखते मुझे, बाद उसके वो सब भूल जाते मुझे,
सहना है अब खुद मैंने जिसे याद मुझे तेरा वो दिल दुखाना रहेगा.
Saturday, January 9, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment