Thursday, January 14, 2010

जिंदगी तुने मुझे कितने अफसानों से मिलाया



जिंदगी तुने मुझे कितने अफसानों से मिलाया,
महफ़िल से दूर लेजा तुने अनजानों से मिलाया.

सर पर छत ना थी मेरे और तेज़ बारिश थी,
मेरी कस्ती को तुने बेरहम तूफानों से मिलाया.

लाचार हुये जब, हमने सहारों की तलाश की,
पर तुने मुझे मतलबी मेहमानों से मिलाया.

टूटे नहीं हम, पर आँखों से आंसू जरुर बहायें,
जब काँटों से सजे बंज़र बयाबानों से मिलाया.

अपने हिसाब है एक सवाल के कई जवाब हैं,
प्यासा था मैं तुने ज़हर भरे पैमानों से मिलाया.

बदलना यहाँ फितरत है जूझना मेरी आदत,
सिखा जिनसे मुझे उन इम्तिहानों से मिलाया.

2 comments:

  1. बदलना यहाँ फितरत है जूझना मेरी आदत,
    सिखा जिनसे मुझे उन इम्तिहानों से मिलाया.

    well done .....

    ReplyDelete