Sunday, January 10, 2010

सबकी नज़रों से दूर, फिर तन्हाई में आज ये दिल रोया है


सबकी नज़रों से दूर, फिर तन्हाई में आज ये दिल रोया है,
जिसे पाकर खुदा को पाया ईश्क का वो हसी मंज़र खोया है.

रातें भी तन्हा, दिन भी मेरे रहते हैं अब तो खाली-खाली,
वक्त का कुछ पता नहीं, शख्स ये जाने कब से नहीं सोया है.

आँखें की बंद, उसकी नफस का फिर रोकर अहसास किया,
दिल के दर्द को यहाँ हर एक ग़ज़ल मैंने में सदा पिरोया है.

आँखों में समुंदर समाया है मेरे, गहराई का अंदाज़ा नहीं,
यादों को लिखूं मैंने हर एक पन्ने को आंसुओ से भिगोया है.

दिल का दर्द सहन नहीं होता कभी, रोकर फिर आराम मिले,
कितनी रातों में खुद को जाने, साकी संग मैखाने में डुबोया है.

ना भूला ना ही भूलूंगा, मोहब्बत के उस बिछड़े फ़रिश्ते को,
उसकी हर याद को, अपनी रूह में हमेशा के लिए सजोया है.

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