Wednesday, January 6, 2010
मेरे ख्वाबों को दिल में लिए, वो बहारों का गुलज़ार सजाती थी
मेरे ख्वाबों को दिल में लिए, वो बहारों का गुलज़ार सजाती थी,
ख्यालों में मेरी ही तस्वीर बना, इस दुनिया से उसे छुपाती थी.
मैंने खुदा को पाया उसमें, दिल्लगी में उसके ही मैं फ़ना हुआ,
जिसे तलाशता हर शख्स यहाँ, उस जन्नत से मुझे मिलाती थी.
यूँ तो पत्थरदिल हुआ करते थे, मोहब्बत से भी अनजान थे हम,
रुख मोड़ दिया मेरा, आंसुओ की नदियों में मेरा नाम बहाती थी.
हर आवाज़ में एक संगीत है, हर नज़र में एक कशिश अजीब हैं,
आँखों से आँखें मिला, अपने ईश्क के ईजहार का गीत गाती थी.
आज हैं हम बेघर, वो इक दौर था जब हम चाहत के मकां में थे,
खोयी-खोयी सी हर लम्हें में मोहब्बत का आशियाँ बनाती थी.
ईश्क के निशां मिटते नहीं, ईश्क करने वालो से पूछो क्यों नहीं,
पहले जो सुनी नहीं थी, बेकरारी की उन सदाओं को सुनाती थी.
वो महसूस किया जिसे अहसास कहते हैं, अब दिन रात सहते हैं,
सूरज की पहली किरण बिखरी हो जैसे, यूँ वो मिलने आती थी.
ज़ज्बात सही से बयां ना कर सका कभी, यहाँ ये मुंकिन नहीं,
चाँद सा रोशन कर छोड़ जाती मुझे, मिलकर जब वो जाती थी.
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