सूरत की सादगी, खूबसूरती को पी गया बना पैमाना,
मिला उसकी नज़रों से नज़र बन गया उसका दीवाना.
हर एक अदा को उसकी ख्वाबों में देखता रातों को,
फूलों से सजी-सजी धरती हर मंज़र लगे अब सुहाना.
चाँद में उसके अक्स को जब देखा मैंने आज रात भर,
तब समझा क्यों कहता है पागल आशिकों को ज़माना.
जिंदगानी के बाद कज़ा, कज़ा के बाद फिर जिंदगानी,
कैसा ये अज़ब सा सदरंगों से सजा है वक्त का फ़साना.
दुनिया में रश्क है लोगों को जाने क्यों दिलवालों से,
हमें तो अपने किये वादे को है यहाँ मरकर भी निभाना.
फरियादी की फरियाद को जब सुन ले तू ए मेरे खुदा,
फिर यहाँ कौन है किस से दूर, है कौन किस से बेगाना.
Tuesday, January 26, 2010
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