Sunday, July 18, 2010

आयी और गयी बहारें, दिन भी वो गुज़र गये

आयी और गयी बहारें, दिन भी वो गुज़र गये,
देख ज़माने की फितरत का रंग हम भी सवर गये.

कई शामो-सहर हम कर गये नाम जिनके,
छोड़ कर मुझको तनहा ना जाने वो किधर गये.

गर यहां बाज़ार में बिकता प्यार का सामान,
तो मिल जाता वो जिसे पाने अजनबियों के दर गये.

यूँ फ़ना हुये की टुकडो में हम तब्दील हुये,
तू ही बता दे क्यों तेरी आवाज़ पे ठहर गये.

वक्त तो गुज़र जायेगा ये भी रोज़ की तरह,
याद करेगा मेरी वफ़ा माना की अब हम मर गये.

इस दिल पर ज़ख्म देके तू खुश रहे हमेशा,
पर बता दे क्यों आँखों को मेरी आंसुओं से भर गये.

4 comments:

  1. bahut khoob lucky ji ...behad khoobsoorat ghazal hai ...

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  2. वक्त तो गुज़र जायेगा ये भी रोज़ की तरह,
    याद करेगा मेरी वफ़ा माना की अब हम मर गये. ...wah!

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