आयी और गयी बहारें, दिन भी वो गुज़र गये,
देख ज़माने की फितरत का रंग हम भी सवर गये.
कई शामो-सहर हम कर गये नाम जिनके,
छोड़ कर मुझको तनहा ना जाने वो किधर गये.
गर यहां बाज़ार में बिकता प्यार का सामान,
तो मिल जाता वो जिसे पाने अजनबियों के दर गये.
यूँ फ़ना हुये की टुकडो में हम तब्दील हुये,
तू ही बता दे क्यों तेरी आवाज़ पे ठहर गये.
वक्त तो गुज़र जायेगा ये भी रोज़ की तरह,
याद करेगा मेरी वफ़ा माना की अब हम मर गये.
इस दिल पर ज़ख्म देके तू खुश रहे हमेशा,
पर बता दे क्यों आँखों को मेरी आंसुओं से भर गये.
bahut khoob lucky ji ...behad khoobsoorat ghazal hai ...
ReplyDeleteवक्त तो गुज़र जायेगा ये भी रोज़ की तरह,
ReplyDeleteयाद करेगा मेरी वफ़ा माना की अब हम मर गये. ...wah!
shukriya sabka ....
ReplyDeleteवहाँ
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