Thursday, May 6, 2010

वक्त ने दी आवाज़ है मौका कुछ कर गुजरने का

वक्त ने दी आवाज़ है मौका कुछ कर गुजरने का,
घूट-घूट के बहुत जी लिए आ गया है पल उभरने का. 


आसमा भी हमें अब निहारता आस में दोस्तों, 
ये भूला नहीं वो ज़मानें शहीदों के लहू बिखरने का.

जाने क्यों ईक दबी आग सुलग रही सबके दिल में यहां,

जी करता है शहादत के गीत उन दिलों में भरने का.

ये नाइंसाफी के नज़ारे, लाचारों संग हो रही ज्यादती,

अब आ गया है आखरी वक्त इन सबके ठहरने का.

दो पल की रोटी पाने के लिए जूझता है जब कोई,

नहीं देखा जाता वो मंज़र किसी की रूह के जलने का.

कुछ लोगों की उँगलियों के ईशारों पर सब की किस्मत, 

होगा ईक नया सवेरा है वक्त ये काली रात के ढ़लने का.

ओ! गहरी नींद में अब तक सोने वालों जरा जगो,

है नयी उमंग सुनहरा मौका फिर ना मिलेगा संभलने का.

अपनी ताकत का अहसास करो तुम रोने वालों कभी,

नया युग नयी संवेदना आ गया वक्त अब सोच बदलने का.

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