Thursday, July 22, 2010

देर से ही सही पर कभी कभी बात हो जाती है

देर से ही सही पर कभी कभी बात हो जाती है,
सोच के उन पलों को आखिर रात हो जाती है.

रूबरू होता हूँ जिस रोज़ सामने आईने के,
बाद मुद्दत के सही सच से मुलाकात हो जाती है.

लोगों की नज़रे पन्नों पे हैं तो सलामत हैं,
कभी ना कभी शायरों की बंद किताब हो जाती है.

अहसास हैं जिंदा तो नगमो की कमी नहीं होती,
नज़र के फर्क से बंजर जमीं कायनात हो जाती है.

कई दफा चैन नहीं मिलता तो उदास हो जाते हैं,
फिर बेजान सूखे पत्तों सी हालत हो जाती है.

यूँ तो राख़ में है मिलना सबको कभी ना कभी,
काम आये किसी के तो जिंदगी कामयाब हो जाती है.

3 comments:

  1. woooooooow ..each n every sher is fabulous...:)
    bahut acchi ghazal hui :)

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  2. maza aa gya padhkar....kaafi dinon baad aapko padha....this is fantastic!

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  3. thanxxxxxxxx a lot both of u :)

    app jaise accha likhne walo ne sharaha ... bahut khushi huyi...

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