Tuesday, July 20, 2010

बरसती फुहारों में भीगकर थोड़ा आराम सा लगता है

बरसती फुहारों में भीगकर थोड़ा आराम सा लगता है,
किसी फ़रिश्ते का नशीला भरा ईक जाम सा लगता है.

अरसे बाद कुछ सुकून के पल हुये जैसे हासिल,
फिजा का रंग किसी बिछड़े की पहचान सा लगता है. 

कभी देखता हूँ मतलब में भागती दुनिया को तो,
हर शख्स यहां ना जाने क्यों नाकाम सा लगता है.

दूसरों की क्या बात करें जो खुद का हाल हो बुरा,
कहे कोई लाजवाब वो भी ईक ईल्ज़ाम सा लगता है. 

किसी रोज़ हँसते हुये देख ले किसी को कोई,
तो है पूछता क्या बात क्यों परेशान सा लगता है.

दर्द का दर्द जाने दर्द को महसूस करने वाला ही,
उसने दर्द में पुकारा जिसको खुद का नाम सा लगता है.

4 comments:

  1. आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

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  2. bahut khooooooooooooob ...har ek sher damdaar hai :)

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  3. कभी देखता हूँ मतलब में भागती दुनिया को तो,
    हर शख्स यहां ना जाने क्यों नाकाम सा लगता है.

    you really write too good!

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