Monday, December 13, 2010

क्या आज सूरज की रोशनी कम है,

क्या आज सूरज की रोशनी कम है,
जो बुझा बुझा सा बोझिल मौसम है.


दुनिया है वही पे जहा वो कल थी,
अहसास ए उदासी क्या मेरा वहम है.



जिस आशियाने की राह  भूल चुके,
उसी की तलाश में बढ़ जाता कदम है.


कभी सुनी सी हो जाती है जिंदगानी,
लगता मिजाज़ महफ़िलों का मातम है.


छलक जाते हैं ये आंसू खुद ही कभी,
गिरती जैसे चांदनी रात में शबनम है.



चाहत खुशियों की प्यास बुझा लूँ,
पर ख़ुशी की सुराही में पानी कम है.



सिने में अज़ीज़ बनके है जो रहता,
मेरा तो ईक ही सनम मेरा ये गम है.

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