Saturday, May 1, 2010

शाम है अकेली तन्हाई का आलम छानेवाला है

शाम है अकेली तन्हाई का आलम छानेवाला है,
दर्द की राह देख रहा कोई लेके दर्द आनेवाला है.

तनहा घूमता रहता है रात भर यहां से वहां,
क्या चाँद भी किसी को दिल से चाहनेवाला है.

सूबे आँख खुली तो चेहरे पे अहसास पाया था,
दिन भर रहा साथ अब छोड़ मुझे जानेवाला है.

सांसे विरहा में कभी तेज़ कभी धीमी हो रही,
बड़ी मुश्किल से आंसुओ को आज संभाला है.

नदी से तड़पते हुये जैसे निकलती है मछली,
कुछ यूँ दिल की यादों को दिल से निकाला है.  

गहरी है चोट और गहरा है ईक दर्द पराया,
हँस के जो उसे ढ़ो रहा बड़ा अज़ब दिलवाला है.

2 comments:

  1. hatsss offf ..har ek sher bahut khobsoorat laga ...par last vala to mindblowing hai ..:)

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