Tuesday, May 4, 2010

दिल को ईक रोज़ टूटकर बिखर जाना ही था

दिल को ईक रोज़ टूटकर बिखर जाना ही था,
खेलकर साथ इसके उसको सवर जाना ही था.

जानेवाला हँसते हुये गया मेरे सूने दर से,
आखिर आँखों को आसुओं से भर जाना ही था.

फरेब की चादर ओढ़े मोहब्बत की सूरत,
सामने उसके झुक मेरा ये सर जाना ही था.

दुनिया के सिलसिले सदियों से चलते आ रहे,
बहारों के इस मौसम को गुज़र जाना ही था.

दुआ ही दी थी अपनी हर एक सदा में उसे,
नाकाम रही तो वफ़ा का सफ़र ठहर जाना ही था.

इंसा जो सोचता है वो कहा होता है मुंकिन,
चाहा था उम्रभर का साथ उसे मगर जाना ही था.

पहचान नहीं होती भीड़ में अपनों और गैरों की,
कड़वा घूंट था सच का गले में उतर जाना ही था.

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